मां के देहांत और पिता की बीमारी के कारण 10 साल की नन्ही परी ने संभाली जिम्मेदारी, पढ़ाई और बचपन किया कुर्वान।
संवाददाता रामस्वरूप सेन - बचपन को आग में झोंकर मजबूरियों की तपन में परेशानियों से लड़कर लड़कपन में जिम्मेदारियों का बोझ उठाती 10 साल की मासूम अस्पतालों के दर दर पर अपने लाचार बाप को लेकर इलाज कराने घूम रही है।इस कच्ची उम्र में अपने पिता की जान बचाने अकेले संघर्ष कर रही है।
यह कहानी है 10 साल की मासूम परी रजक की जो पिछले एक साल से अपने पिता का इलाज करा रही है।जिसमे उसने अपना बचपन झौंक दिया है।पढ़ाई पर तो जैसे पूर्ण विराम लगा दिया है।रात दिन खाने पीने से लेकर दवाई लाने और खिलाने का जिम्मा अपने नन्हे कन्धों पर लिए है।बचपन मे मां गुजर गई,और 2 बड़ी बहनों के असहयोग और भाई की कमी ने आज बचपने को जिम्मेदारी के मीनार बनाने पर मजबूर कर दिया।इस बालिका के हौसले ने अच्छे अच्छे लोगों को हिला कर रख दिया।अपने पिता का ईलाज करते हुए मानवीयता के आधार पर कई लोगों ने मदद भी की भर्ती हुए वार्ड में आसपास के बैड पर भर्ती मरीजों के परिजनों के द्वारा भी सहयोग किया जाता है।और बच्ची निश्चिंतता से अपने पिता की देख रेख करती रहती है और सबके साथ खेलती रहती है।
हाल में सागर के बुन्देलखण्ड मेडिकल कॉलेज में शारीरिक अक्षमता, एनीमिया, जैसी कई और बीमारियों का इलाज जारी है।40 साल के रामकिसुन रजक पिछले एक साल पहले काम करते हुए एक एक्सीडेंट का शिकार हो गए थे जिससे उनके दाएं कूल्हे की हड्डी टूट गई थी तब से उनका एक पैर चलने में गवाही देने लगा है।पत्नी न होने के बाद हुए परवरिस के अभाव ने उन्हें एक के बाद एक बीमारियों ने जकड़ लिया।और हालत लगातार वद से बदतर हो गई।भोपाल में एक वर्ष पूर्व मजदूरी कर झोपड़ी में रहते हुए रामकिसुन रजक अपने बच्चे पालते थे लेकिन बीमार होने के बाद से अपने पैतृक जिले में आकर ही इलाज कराना उचित समझा रामकिसुन पैतृक गांव सुरखी विधानसभा के राजा विलहरा निवासी है।
हालाकि जब हमने इस मरीज के बारे में BMC के सहायक अधीक्षक से बात की तो उन्होंने अच्छे इलाज और स्टॉफ के पूर्ण सहयोग की बात की और बताया की यह मरीज 29 अप्रैल को जिला अस्पताल से रेफर होकर के BMC आया था जिसका अब ईलाज जारी है।