राजधानी से मंहगा ईलाज अब रहली में! आम जनता में आक्रोश, निजी क्लीनिकों की मनमानी पर उठे सवाल।

राजधानी से मंहगा ईलाज अब रहली में! आम जनता में आक्रोश, निजी क्लीनिकों की मनमानी पर उठे सवाल।



सरकारी अस्पताल की दूरी बनी समस्या, सोशल मीडिया पर नागरिकों ने जताई नाराज़गी।

रहली से रिपोर्ट:- 

रहली नगर में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति को लेकर नागरिकों का आक्रोश अब सोशल मीडिया पर खुलकर सामने आ रहा है। शासकीय सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के नगर से बाहर शिफ्ट होने के बाद निजी क्लीनिकों की फीस और दवाओं की कीमतों में हुई बढ़ोतरी को लेकर स्थानीय लोग अपनी नाराज़गी जता रहे हैं।स्थानीय नागरिकों का कहना है कि सरकारी अस्पताल की दूरी और सीमित ओपीडी समय के कारण उन्हें मजबूरन निजी चिकित्सा केंद्रों की ओर रुख करना पड़ रहा है, जहां इलाज की लागत आम लोगों की पहुंच से बाहर होती जा रही है।

"डॉक्टर मिलते नहीं, फीस बढ़ती जा रही है"

नगर के मनोरथ गर्ग ने फेसबुक पर लिखा, "सरकारी अस्पताल में डॉक्टर मिलते नहीं, निजी क्लीनिक में दो हज़ार से कम में इलाज नहीं होता, आम आदमी क्या करे?"

पंडित रीतेश पटैरिया ने ओपीडी शुल्क में कमी की मांग करते हुए लिखा, "थोड़ी फीस कम करो, आम जनता परेशान है।"


"₹15 की दवा ₹350 में, कौन देगा जवाब?"

स्थानीय निवासी अमित श्रीवास्तव ने दवा कंपनियों और पैथोलॉजी केंद्रों पर निगरानी की मांग की। उन्होंने लिखा, "₹15 की दवा ₹350 में दी जा रही है। पत्रकारों को सरकार से जवाब मांगना चाहिए।"

कुलदीप राय ने व्यंग्य करते हुए लिखा, "सरकारी अस्पताल में फ्री इलाज के बाद भी बुखार नहीं गया, लेकिन निजी क्लीनिक में ₹1700 देकर बुखार के साथ पैसे का भी आराम मिल गया।"


"निजी क्लीनिकों में रसीद तक नहीं दी जाती"

दीपेश चौबे ने आरोप लगाया कि "सरकारी डॉक्टर अस्पताल में कम और अपनी निजी क्लीनिक में ज्यादा समय देते हैं। 200 रुपये की दवा पर 2000 रुपये तक का बिल बना दिया जाता है।"

मनोहर लाल पटेल का कहना है कि "कुछ डॉक्टर पानी की बोतल पर ₹700 वसूलते हैं। इलाज मूड पर निर्भर करता है।"

प्रद्युम्न दुबे ने निजी चिकित्सा केंद्रों पर पारदर्शिता की कमी का आरोप लगाते हुए लिखा, "₹100 की दवा ₹500 में दी जाती है, दस्तावेज़ पर साइन के ₹500 वसूले गए और पक्की रसीद तक नहीं दी गई।"

प्रशासन की भूमिका पर भी उठे सवाल

स्थानीय नागरिकों की इन शिकायतों के बीच यह सवाल उठ रहा है कि क्या प्रशासन इस ओर कोई ठोस कदम उठाएगा? क्या निजी चिकित्सा क्षेत्र में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित की जाएगी?

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