हमले में युवक के सिर में 11 टांके, पत्नी का गर्भपात — फिर भी आरोपियों पर सिर्फ 3 साल की सजा वाली धाराएं
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स्थान: नरसिंहपुर, मध्यप्रदेश | दिनांक: 8 अप्रैल 2025 |
सूरजगांव में दिल दहला देने वाली वारदात, जहां एक युवक और उसकी गर्भवती पत्नी पर लोहे के पाइप, लाठियों और धारदार हथियारों से हमला किया गया। हमले में युवक के सिर पर गंभीर चोटें आईं, जिन पर 11 टांके लगे, वहीं पत्नी को भी गहरी चोटें आईं और गर्भपात हो गया। इसके बावजूद स्टेशनगंज थाना पुलिस ने मामूली धाराओं में केस दर्ज किया, जिससे पीड़ित परिवार आक्रोशित है और न्याय के लिए एसपी से गुहार लगाई है।
क्या है पूरा मामला?
शक्तिनगर मगरधा निवासी सोनू उर्फ प्रमोद महार (30) अपनी पत्नी प्रीति ठाकुर (24) के साथ 28 मार्च को सूरजगांव पहुंचे थे। पीड़ित पक्ष के अनुसार, वहां नंदराम ठाकुर, दिनेश ठाकुर, राजकुमार ठाकुर, परिभाषा ठाकुर, सुमन ठाकुर और पार्वती ठाकुर सहित कुल छह लोगों ने योजनाबद्ध तरीके से हमला किया। लोहे की रॉड, बका और कुल्हाड़ी से हुए इस हमले में सोनू गंभीर रूप से घायल हुआ और प्रीति को पेट व पैर में गंभीर चोटें आईं, जिसके चलते 5 अप्रैल को गर्भपात हो गया।
एफआईआर में गड़बड़ी का आरोप
पीड़ित परिवार का आरोप है कि स्टेशनगंज थाना पुलिस ने उनकी शिकायत को गंभीरता से नहीं लिया और केवल तीन आरोपियों के खिलाफ ही केस दर्ज किया। वो भी सिर्फ 118 (1), 296, 115 (2), 351 (2) जैसी जमानतीय धाराओं में, जिनमें अधिकतम 2 से 3 साल की सजा ही निर्धारित है।
पुलिस कार्यप्रणाली पर सवाल
पीड़ितों का कहना है कि एएसआई धनीराम सोनी ने उनके बयान मनमाने तरीके से दर्ज किए और विरोध करने पर उन्हें ही धमकाया गया। बिना हस्ताक्षर वाले बयान पुलिस रिकॉर्ड में जोड़ दिए गए। पीड़ितों को डर है कि इस मामले में न्याय मिलना मुश्किल है।
SP से की गई शिकायत
6 अप्रैल को अस्पताल से डिस्चार्ज होने के बाद दंपत्ति ने एसपी संदीप भूरिया से मुलाकात की और घटना के वीडियो-फोटो सबूतों के साथ लिखित शिकायत सौंपी। एसपी ने मामले की जांच का आश्वासन दिया है।
> "मेडिकल रिपोर्ट आने के बाद धाराओं में इजाफा किया जाएगा। जांच प्रक्रिया जारी है।"
— संदीप भूरिया, अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक
न्याय की आस में पीड़ित दंपत्ति
इस पूरे घटनाक्रम ने पुलिस की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। पीड़ित परिवार का कहना है कि अगर उन्हें समय रहते न्याय न मिला, तो वे हाईकोर्ट या मानवाधिकार आयोग तक जाने को मजबूर होंगे।
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